Tuesday, 27 September 2016

आदित्यहृदयम् स्तोत्रम्‌ संस्कृत और हिन्दी में

आदित्यहृदयम् स्तोत्रम्‌  संस्कृत में  

आदित्यहृदयम् स्तोत्रम्‌
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्॥ १॥
 दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।
उपागम्याब्रवीद्राममगस्त्यो भगवान् ऋषिः॥ २॥
 राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम्।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसि॥ ३॥
 आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।
जयावहं जपेन्नित्यम् अक्षय्यं परमं शिवम्॥ ४॥
 सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम्।
चिन्ताशोकप्रशमनम् आयुर्वर्धनमुत्तमम्॥ ५॥
 रश्मिमंतं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्॥ ६॥
 सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः॥ ७॥
 एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः॥ ८॥
 पितरो वसवः साध्या ह्यश्विनौ मरुतो मनुः।
वायुर्वह्निः प्रजाप्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः॥ ९॥
 आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान्।
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः॥ १०॥
 हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान्।
तिमिरोन्मथनः शम्भुस्त्वष्टा मार्ताण्ड अंशुमान्॥ ११॥
हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनो भास्करो रविः।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः॥ १२॥
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुःसामपारगः।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवङ्गमः॥ १३॥
आतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः।
कविर्विश्वो महातेजाः रक्तः सर्वभवोद्भवः॥ १४॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते॥ १५॥
नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः॥ १६॥
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः॥ १७॥
नम उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः।
नमः पद्मप्रबोधाय मार्ताण्डाय नमो नमः॥ १८॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्यवर्चसे।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः॥ १९॥
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः॥ २०॥
तप्तचामीकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे॥ २१॥
नाशयत्येष वै भूतं तदेव सृजति प्रभुः।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः॥ २२॥
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः।
एष एवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्॥ २३॥
वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः॥ २४॥
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव॥ २५॥
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम्।
एतत् त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि॥ २६॥
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं वधिष्यसि।
एवमुक्त्वा तदागस्त्यो जगाम च यथागतम्॥ २७॥
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्तदा।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान्॥ २८॥
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परं हर्षमवाप्तवान्।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्॥ २९॥
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत्।
सर्वयत्नेन महता वधे तस्य धृतोऽभवत्॥ ३०॥
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति॥ ३१॥

इति आदित्यहृदयम् स्तोत्रम्‌

आदित्या हृदाया स्तोत्र हिन्दी में  


1,2- उधर श्रीरामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिंता करते हुए रणभूमि में खड़े हुए थे । इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया । यह देख भगवान् अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले ।
3 - सबके ह्रदय में रमन करने वाले महाबाहो राम ! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र सुनो ! वत्स ! इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे । 
4,5-  इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है 'आदित्यहृदय' । यह परम पवित्र और संपूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला है । इसके जप से सदा विजय कि प्राप्ति होती है । यह नित्य अक्षय और परम कल्याणमय स्तोत्र है । सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है । इससे सब पापों का नाश हो जाता है । यह चिंता और शोक को मिटाने तथा आयु का बढ़ाने वाला उत्तम साधन है ।
6- भगवान् सूर्य अपनी अनंत किरणों से सुशोभित हैं । ये नित्य उदय होने वाले, देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान नाम से प्रसिद्द, प्रभा का विस्तार करने वाले और संसार के स्वामी हैं । तुम इनका रश्मिमंते नमः, समुद्यन्ते नमः, देवासुरनमस्कृताये नमः, विवस्वते नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराये नमः इन मन्त्रों के द्वारा पूजन करो। 

7- संपूर्ण देवता इन्ही के स्वरुप हैं । ये तेज़ की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं । ये अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित समस्त लोकों का पालन करने वाले हैं ।
8,9- ये ही ब्रह्मा, विष्णु शिव, स्कन्द, प्रजापति, इंद्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरुण, पितर , वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रकाश के पुंज हैं ।
10,11,12,13,14,15 - इनके नाम हैं आदित्य(अदितिपुत्र), सविता(जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य(सर्वव्यापक), खग, पूषा(पोषण करने वाले), गभस्तिमान (प्रकाशमान), सुवर्णसदृश्य, भानु(प्रकाशक), हिरण्यरेता(ब्रह्मांड कि उत्पत्ति के बीज), दिवाकर(रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले), हरिदश्व, सहस्रार्चि(हज़ारों किरणों से सुशोभित), सप्तसप्ति(सात घोड़ों वाले), मरीचिमान(किरणों से सुशोभित), तिमिरोमंथन(अन्धकार का नाश करने वाले), शम्भू, त्वष्टा, मार्तण्डक(ब्रह्माण्ड को जीवन प्रदान करने वाले), अंशुमान, हिरण्यगर्भ(ब्रह्मा), शिशिर(स्वभाव से ही सुख प्रदान करने वाले), तपन(गर्मी पैदा करने वाले), अहस्कर, रवि, अग्निगर्भ(अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले), अदितिपुत्र, शंख, शिशिरनाशन(शीत का नाश करने वाले), व्योमनाथ(आकाश के स्वामी), तमभेदी, ऋग, यजु और सामवेद के पारगामी, धनवृष्टि, अपाम मित्र (जल को उत्पन्न करने वाले), विंध्यवीथिप्लवंगम (आकाश में तीव्र वेग से चलने वाले), आतपी, मंडली, मृत्यु, पिंगल(भूरे रंग वाले), सर्वतापन(सबको ताप देने वाले), कवि, विश्व, महातेजस्वी, रक्त, सर्वभवोद्भव (सबकी उत्पत्ति के कारण), नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन(जगत कि रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी और द्वादशात्मा हैं। इन सभी नामो से प्रसिद्द सूर्यदेव ! आपको नमस्कार है ।

16- पूर्वगिरी उदयाचल तथा पश्चिमगिरी अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है । ज्योतिर्गणों (ग्रहों और तारों) के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है ।
17- आप जयस्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता हैं । आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं । आपको बारबार नमस्कार है । सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान् सूर्य ! आपको बारम्बार प्रणाम है । आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से भी प्रसिद्द हैं, आपको नमस्कार है ।
18- उग्र, वीर, और सारंग सूर्यदेव को नमस्कार है । कमलों को विकसित करने वाले प्रचंड तेजधारी मार्तण्ड को प्रणाम है । 
19- आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी है । सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्यमंडल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाली अग्नि आपका ही स्वरुप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है । 
20 - आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं । आपका स्वरुप अप्रमेय है । आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, संपूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है ।

21- आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरी और विश्वकर्मा हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है ।
22- रघुनन्दन ! ये भगवान् सूर्य ही संपूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं । ये अपनी किरणों से गर्मी पहुंचाते और वर्षा करते हैं ।  
23- ये सब भूतों में अन्तर्यामी रूप से  स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं । ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं । 
24 - देवता, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं । संपूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं उन सबका फल देने में ये ही पूर्ण समर्थ हैं ।

Theory of Karma and embodiment of Soul

                               Embodiment of Soul


                               

In  the journey of time Soul or Atman remains  kept changing the body to show the karmic reflection of one's deed.This journey is cyclical until the salvation is attained till then with the new body or Deh experiences the past karma's  reflection in the present life.How this  process accomplished is very interesting and  only explainable through the knowledge of Vedas  and theory of Karma .


Sri Krishna says in Gita 2:20
The soul never takes birth and never dies at any time nor does it come into being again when the body is created. The soul is birthless, eternal, imperishable and timeless and is never destroyed when the body is destroyed.

Then who is it that takes birth?

It is the body takes birth and not the soul. As you have quoted already that
Sri Krishna says in Gita 2:22
Just as a man giving up old worn out garments accepts other new apparel, in the same way the embodied soul giving up old and worn out bodies verily accepts new bodies.

Atman or Soul is the universal truth that never created or destroyed . Sun is manifested as the soul of the creation , when soul reaches the planes of Saturn or Karma, affect of karma personified into a jeeva on the plane of Jupiter as a Jeevakaraka , when the jeeva reaches on the plane of Mars which represent Deh or body , a new body is obtained by the Soul.

So in the order of creation  starts from Sun --> Saturn --> Jupiter --> Mars

As the Jeeva gets the body reaches the plane of Moon which is a mind of the jeeva and under the influence of North node Rahu which is maya or illusion and Ketu being south node of Moon and karaka of destruction or breaks. So Jeeva is filled with the Mind, Maya and spiritual insight in the Jeeva.

On the next level it reaches on the plane of Venus , a planet of luxury and desires and afterword reaches to Mercury plane where intelligence and intellectual fill the Jeeva.

So Jeeva is completing its journey on different planes and a new body is born with the soul having past karmic influence and filled with the Maya of the life.

Journey of the soul is followed on the different planes as follow:  

Sun --> Saturn --> Jupiter --> Mars -->Moon(Rahu-Maya or illusion+Ketu -Spiritual) --> Venus --> Mercury

So its the body which takes the birth again and again until Ketu gives the exit of the soul to salvation where journey of the soul gets completed .

Its the born body interpretation is done on the basis of birth planetary configuration. Divinity action is understandable by this divine science and we owe our gratitude to the ancient sages for their deep renunciation and meditation and allowed this divine science to be useful of the humanity.

Vedic astrology is based on the theory of karma and the chart represent the X-Ray of the life of the native. Life journey of the native is explainable through this science and one should seek the guidance from a revered Guru of astrology to overcome all the negatives of karmic reflection.

God bless !!!

Om Tat Sat .


Sunday, 18 September 2016

Salman Khan and the marriage conundrum



Salman Khan  better known as Bhaijaan of the bollywood film industry. After a brief period of decline in the 2000s, Khan achieved greater stardom in the 2010s by playing the lead role in several successful action films, including Dabangg(2010), Bodyguard (2011), Ek Tha Tiger (2012), Kick (2014), Bajrangi Bhaijaan (2015) and Sultan (2016) all rank among the highest-grossing Bollywood films of all time. Ten of the films in which Khan has acted in have accumulated gross earnings of over ₹1 billion (US$15 million). He is the only actor to star in the highest-grossing Bollywood films of nine separate years.Khan topped Forbes India charts for 2014, in terms of both fame and revenues.According to the Forbes 2015 list of 'Celebrity 100 : The World's Top-Paid Entertainers 2015', Khan was the highest ranked Indian in 71st rank with earnings of $33.5 million.
One question related to marriage is every fan of Salman wants to know whether it will happen or not?
Lets try to figure out main issues for the denial or delay of the marriage with the help of eyes of vedas.

His horoscopic detail is as follow : 

Name: Salman Khan
Date of Birth: Monday, December 27, 1965
Time of Birth: 14:35:00
Place of Birth: Indore
Longitude: 75 E 54
Latitude: 22 N 42
Birth Moon Nakshatra : Dhanistha(Mars)
Birth Lagna Nakshtra : Bharani(Venus)


Following are the points to validate : 

1. 7th house is referred as the house of marriage and Its karaka is Venus. Here Venus is playing most crucial role being 7th lord and being Karaka of the 7th house.  

2. Denial of marriage  happens when separative planets Rahu , Sun , Saturn  make the impact on the lord of the 7th house by their conjunction or the presence.

3. Venus is hemmed between Saturn & Sun making a Paap Kartari yoga and under full aspect of Rahu from 2nd house of family. This yoga is not suitable for any bhava to frutify their results.

4. Mars being lagna lord and 8th lord of obstruction has got an exaltation in the 10th house where its making a Panch Mahapurush yoga called Ruchaka yoga and also Mars is getting the Digbal.  Mars as being strongest in the planets is making person stubborn , adamant and agressive in nature.Also along  with Venus in the 10th house makes him highly desirous person towards relationships with females.
5. Venus is surrounded  by Saturn + Moon both are females planet making lot of female friend attach to him but also getting the grief from the female friend.

6. Combination of Saturn + Moon is not good as its create lot of depression in the life and also shows the little love from the mother end. Its kind of curse person is to be bear in this life as he gets the life he get little happiness from family and gets little care from the mother and doesn't get love what he deserves. Its create a kind of depression and deep sorrow in life.

7. In the navasma both the female planets Moon is 12th and Venus in 8th showing very less support from the females end.

8. With this curse person is devoid of any kind of marital happiness also devoid of love and care from mother end and makes the person quite aggressive and vulnerable towards mental depression. He had in his past must have created trouble to females due to which curse was deployed him and ultimately native has to struggle in the present life.

9. Why not married  when Jupiter is aspecting the 7th house it being 9th & 12th lord ? Answer being retro in nature goes to previous house and makes a chandaal yoga by Rahu in 2nd house and at 1 degree Jupiter in the 3rd house is almost quite weak. So this Jupiter is also not having strength to frutify the result of marital knot. Jupiter also goes to 12th in the D-9 chart making a it absolutely weak .

10 . In the D-9 Venus is also hemmed  between Sun and Rahu + Mars+Saturn  making the native devoid of happiness of wife or life partner.

11 . 5th house is strongly disposed  so he must have fallen in love with someone but due to Mars aspect from 10th house , this love couldn't get success and ultimately created disputes in his love life and carrier.

12 . This horoscope is showing all the factors negative towards marriage and a quite little hope to survive  with the marriage even if he gets into marriage it will end up in sorrow and seperation until the curse is removed. Though he has achieved everything in his life but due to the prevailing curse he is devoid of marital happiness.  

Astrology is the most beautiful gift of divinity .Through it one can scan entire life of the native with the past karmas and present and also shows the glimpse of  bad karma for which native is getting into the cycle of the karma and all the suffering is associated with these bad karmas.

This horoscope shows a great example of theory of Karma and even after achieving everything in life like name , fame ,status , success ,money etc but not able to get any marital happiness or always struggle from the females. Native has to perform remedies mentioned in the Shastras to remove the effect of the curse  and then only marital happiness would achieved else without performing remedies he can't get any marital bliss in this life.

Om Tat Sat!!! 

Planetary outlook of Bitcoin

Bitcoin was introduced to the world on January 3 , 2009 , exact time is not known so time taken as 12PM . Pl...